होलिका दहन का इतिहास, धार्मिक महत्व और उत्सव की परंपराएं

होलिका दहन: धार्म का प्रिकाश

होलिका दहन भारत के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जो निकृति की जित और दुष्टकता की विजय का प्रतीक है। यह होली की तरह रात की विश्वास को मिटाने वाली है और हर वर्ष गौरव पूर्णिमा महावियों में धूमधाम से मनाया जाता है।

होलिका दहन का धार्मिक प्रसंग

होलिका दहन की जॐ माहात्मा पौराणिक काहानियों से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि भगवान के राजा में हिरण्यकशिपू नामक का एक दुष्ट राजा का राजा करना चाहता था। उसने प्रहलाद के गुरू भक्ति पर होने के लिए होलिका की साजिश किया, ताकि वह प्रहलाद की पूजा में जल गई।

लेकिन भगवान ने होलिका को अग्नि में जला दिया, लेकिन प्रहलाद अग्नि में बम्बी नहीं जले और वह सुरक्ष से बाहर निकला रहा। यही विजय होलिका दहन की प्रसंग बनी ।

होलिका दहन की प्रासंगिकता

होलिका दहन दुष्टक की बुराई का प्रतीक है। यह कार्यक्रम हमें दुष्टक के प्रतीक को जालिये जाना चाहिए और अपनी जित और साधना की रक्षा करनी चाहिए।

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